Railway’s new policy: रेलवे हमारे देश की धड़कन है, जो न केवल यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती है, बल्कि व्यापार और अर्थव्यवस्था को भी गति देती है। लेकिन हाल ही में रेलवे बोर्ड की एक उच्च-स्तरीय नीति बदलाव ने व्यापार जगत और रेलवे के भीतर हलचल मचा दी है।
जून में लागू हुए नए नियमों से बढ़ी असमंजस की स्थिति

18 जून को रेलवे बोर्ड ने एक नई गाइडलाइन जारी की, जिसमें डेमरेज और व्हार्फेज शुल्क माफ करने की ताकत डिवीजनल स्तर के कमर्शियल अधिकारियों से हटाकर एडिशनल डिवीजनल रेलवे मैनेजर (ADRM) को सौंप दी गई। यह बदलाव सुनने में छोटा लग सकता है, लेकिन इसका असर व्यापक है क्योंकि ADRM न तो फील्ड लेवल अधिकारी होते हैं और न ही जरूरी है कि वे कमर्शियल विभाग से संबंधित हों। इससे न केवल फील्ड लेवल की तात्कालिक समस्या-समझने की प्रक्रिया प्रभावित होती है, बल्कि निर्णय लेने की गति और व्यावसायिक समझ भी धीमी हो सकती है।
डेमरेज और व्हार्फेज चार्ज में छूट क्यों है ज़रूरी
रेलवे अपने कुल राजस्व का 70% से अधिक मालभाड़े से कमाता है। ऐसे में अगर माल उतारने या हटाने में देरी हो जाए तो डेमरेज और व्हार्फेज चार्ज लगते हैं। लेकिन व्यापारिक स्थितियाँ हमेशा स्थिर नहीं होतीं और कई बार परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जहाँ ये शुल्क माफ करना जरूरी हो जाता है। अब तक यह निर्णय फील्ड के अनुभवी कमर्शियल अधिकारियों द्वारा लिया जाता था, जो ग्राउंड रियलिटी को बेहतर समझते हैं।
व्यापारिक संस्थाओं और रेलवे जोनों ने दर्ज किया विरोध
नीति परिवर्तन के बाद से कई प्रमुख व्यापारिक समूहों और रेलवे के विभिन्न जोनों ने रेलवे बोर्ड को सख्त शब्दों में पत्र लिखकर इस नीति को वापस लेने की माँग की है। उन्हें डर है कि अब व्यापारिक मामलों में व्यवहारिकता की कमी आ जाएगी, जिससे माल भाड़ा कम हो सकता है और रेलवे का राजस्व भी प्रभावित हो सकता है।
अधिकारी भी कर रहे हैं तुलना और चिंता व्यक्त
एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी ने इसे इस तरह समझाया, “यह ऐसा है जैसे FIR दर्ज करने की शक्ति SHO से लेकर SP को दे दी जाए।” इसका अर्थ है कि अब जो निर्णय पहले स्तर पर तुरंत लिए जाते थे, वे अब ऊपर तक पहुँचकर देरी का शिकार हो सकते हैं, जिससे व्यापार को नुकसान होगा।
रेलवे के लिए सबक और संभावित सुधार की राह

रेलवे हमेशा से बदलाव का माध्यम रहा है, लेकिन हर बदलाव का स्वागत नहीं होता। जब व्यापारिक हित और सुगमता बाधित होती है, तब नीतियों की समीक्षा आवश्यक हो जाती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि रेलवे बोर्ड इस विरोध को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या व्यापार जगत की चिंता को दूर करने के लिए कोई नया समाधान निकालता है।
डिस्क्लेमर: यह लेख सार्वजनिक और मीडिया स्रोतों पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी पूरी तरह से प्रमाणिकता की पुष्टि के उद्देश्य से नहीं है। कृपया किसी भी आधिकारिक कदम से पहले संबंधित विभाग की पुष्टि अवश्य करें। लेख का उद्देश्य केवल सूचना साझा करना और जागरूकता फैलाना है।