Buxar में तीन साल से अटका ओवरब्रिज, लोग बोले– “वादा बहुत, काम ज़रा भी नहीं”

Meenakshi Arya -

Published on: November 28, 2025

Buxar—किसी शहर का विकास कहीं-कहीं पुलों से मापा जाता है। पर यहाँ कहानी उलटी है। बिहार के buxar ज़िले में रेलवे ओवरब्रिज का काम तीन साल पहले शुरू हुआ था, लेकिन आज भी वो अधूरा पड़ा है। शुरुआत में उम्मीद थी कि 18 महीनों में पुल तैयार मिलेगा, रास्ता साफ होगा और जाम से छुटकारा मिलेगा। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि लोग रोज़ फाटक पर खड़े होते-खड़े थक जाते हैं, पर पुल अपनी जगह से हिला तक नहीं।

मामला इटाढ़ी रोड वाले रेलवे क्रॉसिंग का है। स्वीकृति 2013 में मिल चुकी थी, काम 2022 में शुरू हुआ, लेकिन अब 2025 दस्तक दे चुका है– और पुल आधा भी नहीं बन पाया। सड़क पर घूमते ट्रक, घंटों रुकी बाइकें, धूप में खड़े बच्चे और ऑफिस के लिए देर से निकलते लोग इस बात के जीते-जागते सबूत हैं कि इंतज़ार बहुत लंबा हो चुका है।

लोगों की बातें सुनिए तो ग़ुस्सा भी है, थकान भी। एक दुकान वाले ने कहा—
“पहले लगा कुछ महीनों में काम पूरा होगा, फिर लगा एक साल, अब तो शिकायत करना भी बेकार लगता है। काम है नहीं, बस तारीख़ें मिलती रहती हैं।”

फाटक बने रोज़मर्रा की परीक्षा

Buxar: सुबह 8 बजे से रात तक, ट्रेनें आती-जाती हैं और फाटक खुलने-बंद होने का खेल चलता रहता है। जब फाटक बंद होता है तो सड़क पर लंबी लाइन लग जाती है। बाइक सवार सूखी धूल फेंकते आगे बढ़ते हैं, पैदल चलने वाले दोनों हाथ से हवा करते हैं और बुज़ुर्ग अपनी थकान चेहरे पर ढोते हुए रेल लाइन पार करने की कोशिश करते हैं। बच्चों के स्कूल-बस को भी रुकना पड़ता है। कुछ लोग तो कहते हैं—”अगर कभी आपात स्थिति हुई तो क्या होगा? एम्बुलेंस कैसे गुज़रेगी?”

पुल न बनने से सिर्फ समय ही नहीं, सुरक्षा भी दाँव पर है। कई बार लोग जल्दबाज़ी में पटरी पार करते दिखते हैं—ऐसे में हादसे का डर हर पल साथ चलता है।

प्रशासन चुप, जनता परेशान

Buxar: लोगों ने शिकायतें भी कीं– विभाग में, स्थानीय प्रतिनिधियों से, फ़ोन पर, मीटिंग में। हर बार जवाब मिलता है—
“काम जल्द शुरू होगा, प्रक्रिया चल रही है।”
पर ज़मीन पर असली काम नजर नहीं आता। मशीनें खड़ी रहती हैं, मज़दूर कभी आते-कभी गायब हो जाते हैं, और पुल जैसा था वैसा ही बस तस्वीरों में रहता है—न सपनों में, न सड़क पर।

जनता का सब्र अब धीरे-धीरे टूट रहा है। कई युवा कहते हैं कि रोज़ की देरी से नौकरी पर असर पड़ता है, खर्च बढ़ता है, और सफ़र मुश्किल होता चला जा रहा है। जब विकास की बात होती है तो हर कोई यही पूछता है—
“कागज़ पर पुल पूरा है, ज़मीन पर कब होगा?”

अब आगे क्या?

अगर सच में राहत चाहिए तो रेलवे, विभाग और प्रशासन को मिलकर तेज़ी से काम आगे बढ़ाना ही होगा। काम पूरा हो जाए तो—

  • जाम और समय की बर्बादी कम होगी
  • सुरक्षा से लोग पटरी पार कर पाएँगे
  • स्कूल-कर्मचारी-व्यापारी सभी को राहत मिलेगी
  • शहर की आवाजाही बेहतर और तेज़ होगी

ज़िला सिर्फ इंतज़ार नहीं, हल भी चाहता है।

बिंदुविवरण
स्थानBuxar, बिहार
मुद्दारेलवे ओवरब्रिज निर्माण 3 साल से अधूरा
प्रभावजाम, देरी, लोगों की रोज़ की परेशानी
जनता की प्रतिक्रियाइंतज़ार और नाराज़गी दोनों
समाधान की ज़रूरतनिर्माण कार्य में गति व नियमित निगरानी

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Buxar निष्कर्ष

buxar के लोग तीन साल से वही दृश्य देख रहे हैं–गाड़ियाँ रुकी हैं, लोग थमे हुए हैं और पुल बीच में अटका खड़ा है। अब समय आ गया है कि बात से ज़्यादा काम दिखे। एक ओवरब्रिज सिर्फ सीमेंट का ढाँचा नहीं—ये रोज़ की जिंदगी बदलने वाला पुल है। और जब पुल बनता है, तब शहर आगे बढ़ता है।

लोग बस इतनी उम्मीद रखते हैं—
“कभी तो ये इंतज़ार खत्म होगा।”

Meenakshi Arya

मेरा नाम मीनाक्षी आर्या है। मैं एक अनुभवी कंटेंट क्रिएटर हूं और पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र में सक्रिय हूं। वर्तमान में मैं The News Bullet के लिए टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य, यात्रा, शिक्षा और ऑटोमोबाइल्स जैसे विविध विषयों पर लेख लिख रही हूं।

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