ITR: हर साल की तरह इस साल भी इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करने की आखिरी तारीख नज़दीक आते ही करदाताओं और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स (CAs) के बीच बेचैनी बढ़ने लगी। उम्मीद थी कि सरकार इस बार पोर्टल की दिक्कतों और बढ़ते दबाव को देखते हुए करदाताओं को पर्याप्त राहत देगी। लेकिन जब देर रात सरकार ने सिर्फ़ एक दिन का एक्सटेंशन दिया, तो यह राहत से ज़्यादा एक अपमान जैसा महसूस हुआ।
करदाताओं का गुस्सा और निराशा

करदाताओं का कहना है कि ITR फाइलिंग सिर्फ़ एक फ़ॉर्म भरने का काम नहीं है। इसमें कई तकनीकी प्रक्रियाएँ, दस्तावेज़ों की जांच और पोर्टल की दिक्कतों से जूझना शामिल है। ऐसे में जब पोर्टल बार-बार हैंग हो रहा था और सर्वर एरर दिखा रहा था, तब लोगों को उम्मीद थी कि सरकार कम से कम कुछ हफ़्तों का समय देगी। लेकिन सिर्फ़ 24 घंटे की मोहलत देने से कई लोगों ने इसे “प्रक्रिया का मज़ाक” और “टोकनिज़्म” करार दिया।
चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की परेशानी
CAs का कहना है कि एक साथ लाखों लोगों का डेटा संभालना, हर क्लाइंट का रिटर्न समय पर तैयार करना और फिर पोर्टल की धीमी गति से जूझना आसान काम नहीं है। कई अकाउंटेंट्स का कहना है कि इस बार पोर्टल इतना बार-बार क्रैश हुआ कि आधा समय लॉगिन और सबमिट करने में ही चला गया। ऐसे में सरकार का आखिरी समय पर केवल एक दिन की छूट देना उनके परिश्रम और समस्याओं को नज़रअंदाज़ करने जैसा है।
डिजिटल गवर्नेंस पर सवाल
सरकार लंबे समय से डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने की बात करती आई है। टैक्स फाइलिंग प्रक्रिया को भी इसी डिजिटल क्रांति का हिस्सा बताया गया। लेकिन जब हर साल पोर्टल क्रैश होता है, सर्वर एरर दिखाता है और लाखों लोग एक साथ फाइलिंग नहीं कर पाते, तो डिजिटल गवर्नेंस की असलियत पर सवाल उठने लगते हैं। करदाताओं का कहना है कि अगर तकनीक समय पर काम नहीं कर पा रही, तो इसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी?
“राहत” या “औपचारिकता”
कई करदाताओं ने सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालते हुए कहा कि सरकार का यह कदम राहत से ज़्यादा औपचारिकता जैसा है। उनका मानना है कि अगर सरकार वाकई करदाताओं की तकलीफ़ समझती, तो कम से कम 15 दिन से एक महीने का समय बढ़ाया जाता। लेकिन सिर्फ़ एक दिन का एक्सटेंशन इस बात का सबूत है कि सरकार ने केवल आलोचना से बचने के लिए यह निर्णय लिया।
करदाताओं के धैर्य की परीक्षा
ITR फाइलिंग वैसे ही लोगों के लिए एक तनावपूर्ण काम होता है। उस पर पोर्टल की गड़बड़ियाँ और आखिरी समय की हड़बड़ी करदाताओं को थका देती है। कई लोगों ने कहा कि हर साल यही स्थिति बनती है और हर बार सरकार आखिरी समय में राहत देने का नाटक करती है। इस बार भी कुछ अलग नहीं हुआ, बल्कि लोगों का भरोसा और कम हो गया।
आगे की राह और उम्मीदें

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार सचमुच सुधार चाहती है, तो उसे दो स्तरों पर काम करना होगा। पहला, पोर्टल को इतना मज़बूत बनाना होगा कि लाखों लोग एक साथ बिना रुकावट ITR फाइल कर सकें। दूसरा, आखिरी समय में जल्दबाज़ी और गड़बड़ियों से बचने के लिए कम से कम एक महीने पहले से स्पष्ट दिशा-निर्देश और मदद उपलब्ध करानी होगी।
सरकार का सिर्फ़ एक दिन का एक्सटेंशन लाखों करदाताओं और हज़ारों CAs के लिए राहत से ज़्यादा अपमान जैसा लगा। यह स्थिति हमें याद दिलाती है कि सिर्फ़ डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म बना देने से काम आसान नहीं हो जाता, बल्कि उसकी स्थिरता और उपयोगकर्ता अनुभव को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
डिस्क्लेमर: यह लेख मीडिया रिपोर्ट्स और करदाताओं के अनुभवों पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखे गए हैं। किसी भी तरह का वित्तीय निर्णय लेने से पहले संबंधित स्रोतों से आधिकारिक जानकारी अवश्य प्राप्त करें।




