काठमांडू, 9 सितंबर 2025 – Nepal ने आखिरकार सोशल मीडिया पर लगाया गया प्रतिबंध हटा लिया है। यह फैसला उस समय लिया गया जब देशभर में जोरदार विरोध प्रदर्शन हुए और हालात इतने बिगड़े कि पुलिस कार्रवाई में कम से कम 19 लोगों की जान चली गई। अब भले ही सोशल मीडिया फिर से चालू हो गया हो, लेकिन इस घटना ने Nepal के लोकतंत्र, युवाओं और सरकार की नीतियों को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

क्यों लगाया गया था प्रतिबंध?
सरकार ने दावा किया था कि सोशल मीडिया कंपनियों को देश में कानूनी पंजीकरण और जिम्मेदारी तय करने के लिए यह कदम उठाया गया। उनका कहना था कि इन प्लेटफ़ॉर्म्स पर फर्जी खबरें, अफवाहें और अशांति फैलाने वाली सामग्री पर रोक लगाना ज़रूरी है। लेकिन युवाओं को यह फैसला उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला लगा।
Nepal:- सड़कों पर उतरे युवा
प्रतिबंध के बाद सबसे पहले Gen Z यानी युवा पीढ़ी सड़कों पर उतरी। काठमांडू से लेकर पोखरा तक, छात्रों और युवाओं ने नारे लगाए –
“भ्रष्टाचार बंद करो, इंटरनेट नहीं!”
लोगों की भीड़ ने साफ कर दिया कि उनका गुस्सा सिर्फ सोशल मीडिया बंद होने पर नहीं था, बल्कि वे लंबे समय से चल रहे भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और घटती स्वतंत्रता के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रहे थे।
हिंसक हो गए हालात
प्रदर्शन बढ़ते गए और हालात काबू से बाहर हो गए। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस और रबर की गोलियों का इस्तेमाल किया। कई जगहों पर सीधी फायरिंग की गई, जिसमें कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए। यह घटना Nepal के हालिया इतिहास की सबसे हिंसक झड़पों में से एक बन गई।
दबाव में आई सरकार
लगातार बढ़ते जनाक्रोश और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच सरकार को झुकना पड़ा। संचार मंत्री प्रीथ्वी सुब्बा गुरुङ ने आधिकारिक घोषणा की कि अब सोशल मीडिया ऐप्स को फिर से चालू कर दिया गया है।
प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने कहा कि सरकार इन घटनाओं से दुखी है और पीड़ित परिवारों को मुआवज़ा तथा घायल छात्रों का मुफ्त इलाज दिया जाएगा। साथ ही, एक जांच समिति बनाई गई है, जो 15 दिनों में रिपोर्ट सौंपेगी।
Nepal:- राजनीतिक हलचल
इस पूरे घटनाक्रम ने Nepal की राजनीति को भी हिला कर रख दिया। गृह मंत्री रमेश लेखक ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दे दिया। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया कि उसने युवाओं की आवाज़ दबाने के लिए बेमतलब का कदम उठाया, जिसकी वजह से निर्दोष लोगों की जान गई।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी Nepal सरकार की कड़ी आलोचना हुई। संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने हिंसा की स्वतंत्र जांच की मांग की और कहा कि इस तरह की कार्रवाई लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
क्या सिर्फ सोशल मीडिया की लड़ाई थी?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विरोध सिर्फ सोशल मीडिया की बहाली के लिए नहीं था। असल में यह युवाओं का भविष्य और उनके अधिकारों की लड़ाई थी। सोशल मीडिया बैन तो बस एक चिंगारी थी, लेकिन आग भ्रष्टाचार, पारदर्शिता की कमी और आर्थिक चुनौतियों से भरी हुई थी।
निष्कर्ष
Nepal की इस घटना ने यह साबित कर दिया कि युवाओं की आवाज़ को दबाना आसान नहीं है। सोशल मीडिया बैन हटाना एक जीत है, लेकिन 19 परिवारों का खोया हुआ दर्द हमेशा सवाल उठाता रहेगा – क्या यह सब टाला जा सकता था?
यह भी निकलता है कि सरकारों को अब सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना होगा। फेक न्यूज़ और अफवाहों पर रोक ज़रूरी है, लेकिन इसका समाधान बैन नहीं बल्कि बेहतर नियम, निगरानी और शिक्षा है। यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया की बहाली तक सीमित नहीं रहेगा। यह आने वाले समय में युवाओं की राजनीति, सरकार पर दबाव और नीतियों में बदलाव का रास्ता खोल सकता है।