Ladakh में गुस्से का विस्फोट: Ladakh राज्यhood की मांग पर सड़कों पर आग, BJP दफ्तर के बाहर पथराव

Meenakshi Arya -

Published on: September 24, 2025

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Ladakh: लेह।
लद्दाख की बर्फीली वादियाँ आज आग की लपटों में घिरी दिखाई दीं। शांतिपूर्ण आंदोलन के नाम से शुरू हुआ प्रदर्शन अचानक हिंसा में बदल गया। लंबे समय से राज्यhood की मांग कर रही जनता का सब्र टूट गया और लेह की गलियों में गुस्सा खुलकर फूट पड़ा।

कैसे भड़की हिंसा?

मंगलवार सुबह माहौल सामान्य था, लेकिन जैसे ही ख़बर आई कि सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल में शामिल कुछ प्रदर्शनकारियों की हालत बिगड़ गई है, भीड़ भड़क उठी। देखते ही देखते लेह की सड़कों पर हजारों लोग उतर आए।

गुस्साई भीड़ ने BJP दफ्तर के बाहर नारे लगाए, फिर पत्थरबाज़ी शुरू कर दी। पुलिस ने हालात संभालने की कोशिश की, लेकिन प्रदर्शनकारियों का आक्रोश इतना तेज़ था कि एक पुलिस वैन को आग के हवाले कर दिया गया।

लोग क्या चाहते हैं?

Ladakh के लोग सिर्फ़ एक मांग पर अड़े हैं—

  • उन्हें राज्य का दर्जा चाहिए।
  • अपनी जमीन और संसाधनों पर संवैधानिक सुरक्षा चाहिए।
  • और यह भरोसा चाहिए कि दिल्ली उनकी आवाज़ को अनसुना नहीं करेगी।

साल 2019 में जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाया गया और Ladakh को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया, तब कई लोगों ने सोचा था कि विकास के नए दरवाज़े खुलेंगे। लेकिन अब लोगों को लगता है कि बिना राज्यhood के उनकी पहचान और भविष्य अधर में लटक गया है।

सोनम वांगचुक की लड़ाई का असर

लद्दाख के प्रख्यात शिक्षा कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पिछले कई हफ्तों से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। वे और उनका समूह लगातार यह संदेश दे रहा है कि यह आंदोलन सिर्फ़ राजनीति का नहीं, बल्कि Ladakh की आत्मा और अस्तित्व का सवाल है।

उनकी सेहत बिगड़ने की खबर ने आज आंदोलन को और अधिक उग्र कर दिया। प्रदर्शनकारियों का कहना है—
“अगर हमारी मांगे नहीं मानी गईं तो यह संघर्ष और बड़ा होगा।”

सरकार की चुनौती और बैठक की उम्मीद

अब तक स्थिति को काबू करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं। पुलिस ने आंसू गैस और लाठीचार्ज का सहारा लिया, लेकिन तनाव अभी भी बरकरार है।

केंद्र सरकार ने 6 अक्टूबर को लद्दाख प्रतिनिधियों के साथ बैठक का ऐलान किया है। यह तारीख लोगों के लिए उम्मीद और बेचैनी दोनों लेकर आई है। सबकी नज़रें अब इस वार्ता पर टिकी हैं।

जनता की प्रतिक्रिया

सड़क पर उतरे ज्यादातर लोग युवा थे। उनके नारों में गुस्सा कम और अधिकारों की पुकार ज़्यादा थी। कई स्थानीय लोगों का कहना है कि बिना राज्यhood Ladakh का भविष्य सुरक्षित नहीं है।

एक बुजुर्ग प्रदर्शनकारी ने कहा,
“हमने दशकों तक इंतज़ार किया है। अगर अब भी हमें अनसुना किया गया, तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ़ नहीं करेंगी।”

चुनौतियाँ और रास्ता आगे का

  • हिंसा से आंदोलन की असल मांग दब सकती है।
  • सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच भरोसा बहाल करना सबसे ज़रूरी है।
  • अगर 6 अक्टूबर की बैठक विफल रही, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।

निष्कर्ष

आज का उबाल सिर्फ़ पत्थरबाज़ी और आगज़नी की कहानी नहीं है। यह लद्दाख की जनता के दिल का दर्द है। यह उन लोगों की आवाज़ है, जो बर्फीले पहाड़ों में रहकर भी अपनी पहचान और हक़ के लिए आग से गुजरने को तैयार हैं।

अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है। अगर वार्ता सफल रही, तो Ladakh को उसका हक़ मिल सकता है। लेकिन अगर बात आगे नहीं बढ़ी, तो यह आंदोलन और तेज़ हो सकता है।

लद्दाख आज सिर्फ़ राज्यhood नहीं मांग रहा, बल्कि अपने भविष्य की गारंटी मांग रहा है। यदि केंद्र सरकार और प्रदर्शनकारियों की बैठक सफल हो जाए और भरोसा बना रहे, तो यह संकट संवाद का अवसर बन सकता है। लेकिन अगर मुद्दा अनसुलझा रह गया — तो लद्दाख फिर उबल सकता है।

उम्मीद है कि 6 अक्टूबर की वार्ता Ladakh के लिए एक शांत, सम्मानजनक और न्यायसंगत भविष्य की शुरुआत लाएगी — ताकि यह क्षेत्र भी अपनी पहचान और अधिकारों के साथ आगे बढ़ सके।

Meenakshi Arya

मेरा नाम मीनाक्षी आर्या है। मैं एक अनुभवी कंटेंट क्रिएटर हूं और पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र में सक्रिय हूं। वर्तमान में मैं The News Bullet के लिए टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य, यात्रा, शिक्षा और ऑटोमोबाइल्स जैसे विविध विषयों पर लेख लिख रही हूं।

Leave a Comment