Dehradun district floods: देहरादून।
पिछली रात आसमान ने जैसे अपना सारा बोझ धरती पर उतार दिया। देखते-ही-देखते नदियाँ उफान पर आ गईं, सड़कें नालों में बदल गईं और घरों के आँगन मलबे से भर गए। यह सिर्फ़ एक मौसम की घटना नहीं थी, बल्कि “dehradun district floods” के नाम से दर्ज होने वाली वह त्रासदी है, जिसने लोगों के जीवन की धारा ही बदल दी।
तबाही की तस्वीर

Dehradun district floods: सहस्रधारा, मालदेवता और टपकेश्वर के आसपास का इलाक़ा सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ। टाम्सा नदी और छोटे-छोटे नाले इतने बेकाबू हो गए कि पुल बह गए, सड़कें धँस गईं और कई गाँवों का संपर्क पूरी तरह टूट गया।
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है और दर्जनों लापता हैं। दर्जनों मकान जमींदोज़ हो गए और खेतों की फसल बह गई।
इंसानी दर्द
Dehradun district floods:- कौशल्या देवी, जिनका घर सहस्रधारा के किनारे था, आँसू पोंछते हुए कहती हैं:
“पिछली रात पानी इतना तेज़ आया कि हम बच्चों को लेकर जैसे-तैसे भाग पाए। घर का सब सामान, ज़मीन का काग़ज़, दहेज का बक्सा… सब बह गया। अब जीकर भी क्या बचा है?”
वहीं आईटी पार्क में पढ़ाई करने वाला छात्र अभिनव बताता है:
“हम हॉस्टल के कमरे में थे। रात को लगा जैसे धरती काँप रही हो। सुबह देखा तो कैंपस पूरा पानी से भरा था। हमें पुलिस ने नाव से निकाला।”
श्रद्धा पर भी संकट
Dehradun district floods: टपकेश्वर महादेव मंदिर, जहाँ रोज़ श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, पानी में डूब गया। पुजारी रामकृष्ण कहते हैं:
“लोग दर्शन करने आए थे, लेकिन अचानक पानी बढ़ने से सबको निकालना पड़ा। भगवान का घर भी आज बाढ़ की मार झेल रहा है।”
तीर्थयात्री, जो गंगा-यमुना के संगम की ओर जा रहे थे, उन्हें भी बीच रास्ते से लौटना पड़ा।
प्रशासन की दौड़-भाग
Dehradun district floods:- एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें पूरी रात काम करती रहीं। हेलीकॉप्टरों से फंसे लोगों को निकाला गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद मौके पर पहुँचे और ऐलान किया कि हर प्रभावित परिवार को तत्काल राहत दी जाएगी।
लेकिन सच यह है कि इतनी बड़ी तबाही के सामने प्रशासन भी असहाय नज़र आया। राहत कैंपों में भीड़ है, पीने के पानी और दवाइयों की कमी की शिकायतें आ रही हैं।
क्यों आई यह आपदा?
विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ़ बारिश या बादल फटने की वजह से नहीं है। पिछले कई सालों से पहाड़ों में बेतरतीब निर्माण, जंगलों की कटाई और नालों की अनदेखी ने हालात को और ख़राब कर दिया।
मौसम वैज्ञानिक भी चेतावनी दे चुके हैं कि क्लाइमेट चेंज के कारण उत्तराखंड जैसे राज्यों में अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ेंगी।
इंसानियत की मिसालें
तबाही के बीच उम्मीद की कहानियाँ भी हैं।
- युवा संगठन रातभर लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुँचाते रहे।
- गाँव की महिलाएँ, जिनके अपने घर बह गए, उन्होंने दूसरों को खाना खिलाया।
- एक बुज़ुर्ग दंपती ने अपनी ज़मीन पर राहत कैंप बनवाया ताकि बेघर लोग वहाँ रह सकें।
रमेश प्रसाद, गाँव के बुज़ुर्ग, कहते हैं:
“हम पहाड़ी लोग हैं, टूटते हैं पर बिखरते नहीं। फिर से गाँव खड़ा करेंगे।”
निष्कर्ष
“dehradun district floods” सिर्फ़ मौसम की मार नहीं, बल्कि हमारी लापरवाहियों का नतीजा भी है। यह त्रासदी हमें याद दिलाती है कि प्रकृति से छेड़छाड़ करना कितना भारी पड़ सकता है।
इन लहरों में सिर्फ़ घर और ज़मीन नहीं बही, बल्कि अनगिनत सपने भी डूब गए। लेकिन वही पानी हमें यह सबक़ भी दे गया कि मिल-जुलकर, इंसानियत के साथ, हम फिर से खड़े हो सकते हैं।
यह बाढ़ भले ही दर्दनाक हो, लेकिन इसके बाद जो कहानियाँ निकलेंगी — हिम्मत, भरोसे और इंसानी जज़्बे की — वही भविष्य में देहरादून को नया जीवन देंगी।




