संपत्ति में अब बेटी को मिलेगा बराबरी का हक कोर्ट का revolutionary decision

Rashmi Kumari -

Published on: July 13, 2025

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Revolutionary decision: आज जब हम बेटियों को पढ़ा-लिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने का सपना देखते हैं, तो उनके अधिकारों की बात करना भी उतना ही जरूरी हो जाता है। भारतीय समाज में लंबे समय से एक सवाल उठता रहा है क्या बेटी को पिता की संपत्ति में बराबरी का हक मिलना चाहिए? और अब 2025 में, इस सवाल का जवाब भारतीय न्यायपालिका ने स्पष्ट रूप से दे दिया है हां, बेटी को भी उतना ही अधिकार है जितना बेटे को।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला बराबरी का हक

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया कि हर बेटी को अपने पिता की संपत्ति में समान हिस्सा मिलेगा। यह फैसला केवल किसी एक धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी धर्मों की बेटियों पर लागू होगा। यह कदम न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में बेटियों की पहचान और उनके अस्तित्व को भी मजबूती से स्थापित करता है।

संपत्ति में बेटी की हिस्सेदारी अब कानूनी हक

अब बेटियों को अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्सा पाने के लिए किसी उपहार या वसीयत का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। नया फैसला कहता है कि बेटी का हिस्सा अब कानूनी रूप से तय होगा और इसे नकारा नहीं जा सकता। यह बदलाव विशेष रूप से उन परिवारों के लिए राहत लेकर आया है, जहां बेटियों को केवल शादी के समय उपहार देकर उनकी जिम्मेदारी खत्म मान ली जाती थी।

यह कदम कैसे बदलेगा बेटियों का भविष्य?

जब एक लड़की को उसके पिता की संपत्ति में हक मिलता है, तो वह केवल आर्थिक रूप से ही नहीं, मानसिक और सामाजिक रूप से भी सशक्त होती है। उसे यह महसूस होता है कि वह परिवार का उतना ही जरूरी हिस्सा है जितना कि बेटा। इस अधिकार से बेटियाँ आत्मनिर्भर बनेंगी और समाज में सम्मान से खड़ी होंगी।

विवाह के बाद भी अधिकार रहेगा बरकरार

एक आम भ्रांति यह रही है कि शादी के बाद बेटी का मायके की संपत्ति से नाता टूट जाता है। लेकिन अब कोर्ट ने साफ किया है कि विवाह के बाद भी बेटी का अधिकार खत्म नहीं होता। वह पूरे हक से संपत्ति की उत्तराधिकारी बनी रहेगी। इससे न सिर्फ बेटियों की स्थिति मजबूत होगी, बल्कि परिवारों में भी समानता और संतुलन का संदेश जाएगा।

समाज में बदलाव का संकेत

यह कानून केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि समाज में एक बड़े बदलाव की शुरुआत है। यह फैसला महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक मजबूत कदम है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा मिलेगी। अब बेटी होना गर्व की बात है, और समाज को यह समझना होगा कि बेटियां बोझ नहीं, बल्कि बराबरी का अधिकार रखने वाली एक संतान हैं।

अंतिम विचार – अब बेटी भी है वारिस

पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति है। इससे न केवल परिवारों में सामंजस्य बढ़ेगा बल्कि बेटियों को वह स्थान मिलेगा जिसकी वे हकदार हैं। यह फैसला उन सभी बेटियों के लिए उम्मीद की किरण है जो वर्षों से अपने अधिकार के लिए लड़ रही थीं। 2025 का यह निर्णय एक नया युग लेकर आया है – समानता का, सशक्तिकरण का और न्याय का।

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी और जन-जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। संपत्ति या कानून संबंधी निर्णय लेने से पहले कृपया किसी विशेषज्ञ वकील या सलाहकार से सलाह अवश्य लें।

Rashmi Kumari

मेरा नाम Rashmi Kumari है , में एक अनुभवी कंटेंट क्रिएटर हूं और पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही हूं। फिलहाल, मैं The News Bullet पर तकनीकी, स्वास्थ्य, यात्रा, शिक्षा और ऑटोमोबाइल्स जैसे विषयों पर आर्टिकल लिख रही हूं। मेरा उद्देश्य हमेशा जानकारी को सरल और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करना है, ताकि पाठक उसे आसानी से समझ सकें और उसका लाभ उठा सकें।

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