Made in China: हम सब जानते हैं कि आज भारत तेज़ी से एक वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की ओर बढ़ रहा है। ‘Make in India’ जैसे अभियान इस राह को आसान बना रहे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारत जैसा ही एक सपना चीन ने भी देखा था और वो भी कोई दस साल पहले? इसे कहा गया था ‘Made in China 2025’। अब जबकि यह योजना अपने 10 साल पूरे करने जा रही है, यह जानना जरूरी है कि चीन ने इससे क्या पाया और भारत इसके अनुभवों से क्या सीख सकता है।
क्या है ‘Made in China 2025’ योजना

साल 2015 में चीन ने ‘Made in China 2025’ नाम से एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी। इसका मुख्य उद्देश्य था पारंपरिक उत्पादन से हटकर तकनीक आधारित और उन्नत निर्माण क्षेत्र की ओर बढ़ना। तब तक चीन ‘दुनिया की फैक्ट्री’ बन चुका था, लेकिन वह चाह रहा था कि अब उसके उद्योग केवल सस्ते उत्पादों तक सीमित न रहें, बल्कि इनोवेशन, उच्च तकनीक और विश्व स्तरीय गुणवत्ता के केंद्र बनें।
इस योजना के अंतर्गत जिन 10 मुख्य क्षेत्रों पर ज़ोर दिया गया उनमें इलेक्ट्रिक व्हीकल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नई सूचना तकनीक, उन्नत कृषि तकनीक, बायोमेडिसिन, हाई स्पीड रेल, सिंथेटिक मटीरियल्स, समुद्री इंजीनियरिंग और ग्रीन एनर्जी प्रमुख थे।
फिर अब क्यों नहीं बोलते चीनी नेता इस योजना के बारे में
यह सवाल बड़ा दिलचस्प है। दरअसल, जैसे ही दुनिया को इस योजना की गहराई का अंदाज़ा हुआ, कई पश्चिमी देशों ने इसे चीन के औद्योगिक वर्चस्व के लिए खतरा मान लिया। अमेरिकी थिंक टैंक्स और मीडिया ने इस योजना को लेकर चिंता जताई और माना कि यह चीनी कंपनियों को अनुचित लाभ देता है, साथ ही विदेशी कंपनियों के लिए नए दरवाज़े बंद कर देता है।
इस वजह से अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते चीन के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से इस योजना का ज़िक्र करना कम कर दिया। जैसा कि The Economist में लिखा गया, “Made in China 2025 अब वैसा शब्द है जिसे चीनी अधिकारी नाम लेने से कतराते हैं।”
कितना सफल रहा ‘Made in China 2025’
चुपचाप ही सही, लेकिन चीन ने इस योजना को पूरी ताकत से लागू किया। आज चीन दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादक बन चुका है। AI और ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में उसने लंबी छलांग लगाई है। चीन के पास अब हाई-एंड ट्रेन, 5G, स्मार्टफोन और बायोमेडिकल क्षेत्र में विश्व स्तरीय उत्पादन क्षमताएं हैं।
हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह योजना अब एक नए चरण में प्रवेश कर चुकी है, जहाँ AI और ग्रीन एनर्जी से चीन की औद्योगिक नींव और मजबूत बन रही है।
भारत के लिए क्या सबक हैं इसमें
भारत ने ‘Make in India’ को 2014 में शुरू किया था। इसका लक्ष्य भी यही था भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग और डिज़ाइन हब बनाना। इस दिशा में भारत ने भी कई सफलताएं पाई हैं। Apple जैसे बड़े ब्रांड अब भारत में iPhone बना रहे हैं, और आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा 25% तक पहुंच सकता है।
लेकिन चीन की रणनीति से भारत को यह सीख मिलती है कि केवल नारे या प्रचार से बात नहीं बनती। एक स्पष्ट रोडमैप, सरकारी नीतियों में निरंतरता, टेक्नोलॉजी में निवेश और स्थिर नियमों की ज़रूरत होती है।
भारत को और क्या करना होगा

भारत को अब अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सिर्फ कम लागत वाला नहीं, बल्कि तकनीक-संपन्न, वैश्विक गुणवत्ता वाला बनाना होगा। रिसर्च, स्किल डेवलपमेंट, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और लॉन्ग टर्म पॉलिसी पर फोकस ज़रूरी है।
भारत के पास युवा आबादी है, बड़ा बाज़ार है और लोकतांत्रिक व्यवस्था है। अगर हम इन ताकतों का सही उपयोग करें, तो हम भी एक मजबूत और आत्मनिर्भर औद्योगिक राष्ट्र बन सकते हैं।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें दी गई सभी जानकारियाँ सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित हैं। नीति से जुड़ी कोई भी कार्रवाई करने से पहले संबंधित विभाग या विशेषज्ञ की सलाह ज़रूर लें।