Paresh Rawal: हम सभी ने कभी न कभी “हेरा फेरी” देखी है, और बाबूराव गणपतराव आपटे का नाम सुनते ही मुस्कान अपने आप चेहरे पर आ जाती है। इतने वर्षों बाद जब यह खबर सामने आई कि पैरेश रावल “हेरा फेरी 3” में लौट रहे हैं, तो फैंस के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन इसी के साथ रावल ने एक गहरी और सोचने पर मजबूर करने वाली बात भी कह दी “मल्टीप्लेक्स अब सिनेमा हॉल नहीं, स्पा बन गए हैं।”
ये सिर्फ एक अभिनेता का बयान नहीं था, बल्कि एक सजग कलाकार की सोच थी जो सिनेमा को जनता का मंच मानता है, न कि केवल अमीरों का मनोरंजन।
बदलते दौर में सिनेमा का बदलता चेहरा

Paresh Rawal ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में खुलकर यह बात रखी कि आज के मल्टीप्लेक्स इतने महंगे और लग्जरी हो गए हैं कि एक आम आदमी वहां जाकर फिल्म देखने से पहले कई बार सोचता है। रेक्लाइनर सीटें, ₹300-₹400 के टिकट और पॉपकॉर्न पर खर्चा मिलाकर एक फैमिली को हज़ारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। उन्होंने सवाल किया, “क्या सिनेमा का उद्देश्य यह था?”
उनका कहना था कि थिएटर अब आम जनता से दूर होते जा रहे हैं। एक ऐसा माध्यम जो कभी समाज के हर वर्ग की आवाज़ हुआ करता था, अब केवल एलिट क्लास का अनुभव बनता जा रहा है।
‘हेरा फेरी 3’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक जिम्मेदारी
Paresh Rawal की वापसी के साथ “हेरा फेरी 3” को लेकर फैंस के बीच उत्साह चरम पर है। लेकिन अभिनेता खुद मानते हैं कि इतनी बड़ी फ्रेंचाइजी को केवल हंसी-ठिठोली तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के दौर में दर्शक सिर्फ हंसना नहीं चाहते, वे एक कहानी में भावनाओं की गहराई और किरदारों की सच्चाई ढूंढते हैं।
रावल चाहते हैं कि यह फिल्म अपनी जड़ों से जुड़ी रहे वही पुरानी मासूमियत, वहीं हल्की-फुल्की कॉमेडी, और वही समाज से जुड़ा मज़बूत संदेश।
सिनेमा सिर्फ पैसा कमाने का जरिया नहीं
रावल की यह चिंता कि आज की फिल्में सिर्फ ग्लैमर और मुनाफे के चक्कर में अपने भावनात्मक मूल्य खो रही हैं, हर सच्चे फिल्म प्रेमी के दिल को छू जाती है। उन्होंने आग्रह किया कि फिल्ममेकर्स को दर्शकों की संवेदनाओं को समझते हुए फिल्में बनानी चाहिए। सिनेमा को केवल बड़े बजट, बड़ी लोकेशन और बड़े सितारों तक सीमित नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे जन-जन की आवाज़ बनाना चाहिए।
एक अनुभवी अभिनेता की सादगीभरी सलाह
Paresh Rawal जैसे अनुभवी अभिनेता का यह बयान न केवल सोचने पर मजबूर करता है, बल्कि आने वाले कलाकारों और निर्देशकों को यह सीख भी देता है कि कला की असली पहचान उसकी सच्चाई में होती है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की चिंता नहीं कि फिल्म सुपरहिट होगी या नहीं, बल्कि इस बात की है कि क्या फिल्म किसी के दिल को छू पाएगी या नहीं।
क्या वाकई सिनेमा अब आम आदमी का नहीं रहा

Paresh Rawal के शब्द आज के फिल्मी माहौल में एक आईना बनकर उभरे हैं। जब मल्टीप्लेक्स केवल पैसा कमाने का अड्डा बन जाते हैं और आम दर्शक सिनेमा से कटने लगता है, तब सवाल उठाना ज़रूरी हो जाता है। “हेरा फेरी 3” केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक मौका है सिनेमा को उसकी सच्चाई और सरलता में लौटाने का।
डिस्क्लेमर: यह लेख Paresh Rawal द्वारा एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में दिए गए विचारों पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों से ली गई है और केवल सूचनात्मक उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी आधिकारिक घोषणा, फिल्म या इवेंट से पहले स्वयंसत्यापन अवश्य करें।